-सबसे ब़ड़ा सवाल ये है कि सरकार पर नजर रखने के लिए मीडिया बनी है या मीडिया पर नजर रखने के लिए सरकार बनी है। मीडिया का काम ही यही है कि वो सरकार पर नजर रखे, जनता की बात जनता तक पहुंचाए, सरकार को बताए कि वो ये गलत कर रही है। लेकिन यहां तो स्थिति बिल्कुल उलटी हो चुकी है। सरकार मीडिया को बता रही है कि ये गलत है और ये सही है। किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में इसे सही नहीं ठहराया जा सकता। आप पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की हालत देखिए। कितनी अराजकता है, लोकतंत्र नाम की चीज नहीं है, लेकिन वहां का मीडिया हमसे ज्यादा आजाद है। हमारी सरकार को क्या ये नहीं दिखाई देता। मीडिया पर सेंसरशिप का सरकारी ख्याल कतई लोकतांत्रिक नहीं है। ये प्रेस की आजादी पर हमला है।
(विनोद कापड़ी इंडिया टीवी के मैनेजिंग एडिटर हैं)
सोमवार, 12 जनवरी 2009
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